ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ |
ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ
ज़िम्मेदारी को रख कर परे, सिर्फ बस्ते का बोझ उठाना चाहता हूँ
एक बार फिर से उसी बेंच पर अपने दस्तख़त करना चाहता हूँ
"आज का विचार" तख़्ते पर लिखना चाहता हूँ
ज़िद की है दिल से कि फिर स्कूल जाना चाहता हूँ
मैं चोरी छुपे टिफ़िन बॉक्स में से खाना चाहता हूँ
बॉस के सामने तो जी हुजूरी बहुत करली
मैं टीचर को प्यार से सताना चाहता हूँ
नलके में चुल्लु बनाकर पानी पीना चाहता हूँ
स्कूल के दिन फिर से जीना चाहता हूँ
स्कूल के गलियारों में दौड़ लगाना चाहता हूँ
एक बार के लिये ही सही मैं वक़्त को हराना चाहता हूँ
ज़िद की है दिल से की फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ
'सुकून' स्कूल बनकर हमें उधार देता है
यह वही जगह है जो हमें पहला प्यार देता है
स्कूल के मैदान में कपड़े गंदे करना चाहता हूँ
बारिश में उछलना कूदना चाहता हूँ
उँगलियों बीच पेंसिल घुमाना चाहता हूँ
किताबों पर कलम चलाना चाहता हूँ
ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ
नयी किताबों की महक दिल में बसाना चाहता हूँ
तस्वीर छुपा कर किसी की, दुनिया से छुपाना चाहता हूँ
ज़ोर ज़ोर से 'जन गण मन' गाना चाहता हूँ
जो भी दिल कहे उसे मानना चाहता हूँ
रोज़ मर्रा के काम को रख कर परे, मॉनिटर बन जाना चाहता हूँ
हुकुम बजाते हैं हम दफ्तरों में, एक बार फिर हुकुम चलाना चाहता हूँ
अगर महीने दो महीने की गर्मी की छुट्टियाँ नसीब हो
मैं फिर से नानी के घर जाना चाहता हूँ
बड़े हो जाने के भार को नहीं ढ़ोना चाहता हूँ
मैं कान पकड़ कर क्लास के बाहर खड़ा होना चाहता हूँ
ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ
बहुत साल हो गए, फिर से साईकल चलाना चाहता हूँ
स्कूल के मंच पर अपना हुनर आज़माना चाहता हूँ
अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता हूँ
सुबह सुबह उठ कर पढ़ना चाहता हूँ
परीक्षा के डर से लड़ना चाहता हूँ
ऑफिस में नहीं हुआ करती घंटिया , ना किसी का इंतज़ार होता है
हर एक घंटा दूसरे घंटे के बराबर होता है
हर दिन का अलग टाइम टेबल बनाना चाहता हूँ।
ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ।।
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